अर्ज करते हैं
आँखों में दर्द ही दर्द भरा है ।
न कोई सपना हरा भरा है ।
हर अपना मुझसे खफा है ।
दुनिया भी कहती बेवफा है ।
मेरी रूह के पन्ने किसको पढ़ाऊं ।
किसको दर्द का आईना दिखाऊं ।
मन अशांत सा हर पल रहता है ।
हर पल दर्द का बोझ सहता है ।
इस मुसाफिर की खोयी है पहचान
हो रहा मंजिल से अनजान
कब मिलेगा शांति का मुकाम
होंगे खत्म पुराने दर्द तमाम
शायद कभी वो पल आ पाये
इस उम्मीद अब तक आगे चल पाये
खुदा से बस एक ही बिनती है ।
अब तो हर पल बची ताकत भी छिनती है ।
मेरी जिंदगी की गुथ्थी सुलझा दो ।
चेहरे की रौनक वापिस लौटा दो ।
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