एक भिखारी था ऐसा



एक भिखारी था ऐसा

दिखता वर्षों से थके जैसा




चेहरे पर मेहनत का नूर था

फिर भी क्यों बेबसी से चूर था




शायद वो किसी बाप का बेटा था

जो शायद उम्मीदों से हार गया था




तुम जीवन कुछ नहीं कर सकते

इस वाक्य पर ही मन मार गया था




शायद वो किसी ऐसी मां का बेटा था

जिसने कहा मेरा बेटा मेरी नहीं सहता था।





शायद वो किसी पत्नी का पति था

जिसके लिए होता दिन रात मेहनत से सती था

पर उसकी पत्नी भी खफा रहती थी

बात बात पर तीखे ताने सुना देती थी




बची उम्मीद बस छोटे-छोटे बच्चों से थी

लेकिन उनकी बुद्धि तो कान के कच्चों सी थी




हिम्मत वो इस कदर हार गया था

बेशक परिवार पर जिंदगी वार गया था




मित्र से अपना दुख उसने बांटा

मदिरा को इसका जरिया माना




जैसे ही घर पर वह उस हालत में आया

बस उसने मदिरा पान और हिंसा का लांछन पाया।




अंत में वह अपने पेशे में भी हार गया

कौन जानता था वो तो अपना सब कुछ परिवार पर वार गया







तंग आकर उसने घर छोड़ने की ठानी

जब खत्म हुए पैसे तो, भीख मांगने को ले आयी जिंदगानी




कुदरत के खेल है बड़े न्यारे

इंसान अपनी मनमानी में बेशक अपना सब कुछ वारे




भीख मांगने पर जो मलिक ने देखा उसका हाल

बस फिर जाना उसके दर्द का बुरा हाल




ढूंढा उसके मित्र ने घरवालों से बढ़के उसको

मारे फिरता इस आस में मिले वो उसको




उसके घरवाले अब भी उसके बारे कुछ और ही सोचते

भागा होगा किसी संग बस यही हर पल सोचते




काश उसके अकेलेपन को उसके घरवालों ने समझा होता

होता घर की शान वो, न भीख मांगता होता




एक भले ने उसके मित्र तक यह खबर पहुंचाई

एक भले को भीख मांगने की व्यथा बतलायी




मित्र यह सुनकर पहले उसके घरवालों को मिलने आया

दस बीमा पॉलिसी सभी की दिखाकर, आइना दिखलाया





जिसको कोसते थे पति पत्नी और घरवाले

उस आदमी ने उनके सुखद भविष्य में वर्ष गुजार डाले




रो रो के हुआ पूरे परिवार का बुरा हाल

बेबसी औए अफसोस से हो गए बदहाल




उन्हें अब घर के बेटे की व्यथा समझ में आई

क्यों नहीं उसे समझने में पहल उन्होंने दिखाई




घर का जिम्मेदार किसी धातु का बना नहीं होता

उसको तकलीफ दर्द सब एक सा होता




ये बात अब ली परिवार ने जान

लेकिन अब भिखारी की हालत,वो नहीं रहा था किसी को पहचान




सभी ने मिलकर ऐसा कुछ प्रयास किया

उसने भी अपनेपन का परिवार वालों से आभास किया




आज वो भिखारी मित्र की बदौलत परिवार को पा गया

बस ये किस्सा था इतना मार्मिक, मलिक से कलम चलवा गया





कहानी होगी बेशक ये कहीं की काल्पनिक

बस काव्य रूप में दर्शायी है




समाज में इस तरह की घटना पर जागृति हेतु

शब्दों से रोशनी डलवाई है




वो चेहरा नहीं भुला मुझे बिल्कुल भी

क्या बतलाऊँ था वो कैसा

एक भिखारी था ऐसा

दिखता वर्षों से थके जैसा

कृष्ण मलिक अम्बाला

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